करवा चौथ पर दस पंक्तियाँ
‘करवा चौथ’ का त्यौहार हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्यौहार है। यह हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।
करवा चौथ का व्रत स्त्रियों द्वारा अपने पति की लम्बी उम्र के लिए रखा जाता है l यह सम्पूर्ण भारत में हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस व्रत में स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घ आयु के लिए निर्जला व्रत रखकर चन्द्रमा के दर्शन के बाद ही जल और अन्न ग्रहण करती हैं।करवा चौथ का पर्व उत्तर भारत में ज्यादा प्रचलित है। उत्तर भारत के हर प्रांत में इसे अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। करवा चौथ का व्रत कुंवारी लड़कियां भी रखती हैं और अच्छा पति मिलने की कामना करती हैं।
इस दिन महिलाएं दुल्हन की तरह सोलह श्रृंगार करती और हाथों में मेहँदी लगाती हैं , इस दिन स्त्रियाँ चंद्रोदय के बाद एक गोल छन्नी से चंद्र का दर्शन के बाद में पति का चेहरा देखती है एवं पूजन करने के बाद ही व्रत तोड़ती हैं।
कई स्थानों पर इसे अलग तरीके से मनाते हैं वहाँ विवाहित महिलाएं सूर्योदय से पूर्व उठकर सरगी खाती हैं। इसे खाने के बाद सुहागन स्त्रियां दिनभर के लिए व्रत रखती हैं। दोपहर के समय स्त्रियां इस व्रत से संबंधित कथा कहानी सुनती हैं। चंद्रोदय के बाद रात को चंद्रमा की पूजा की जाती है जिसमें पत्नियां अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। चंद्रोदय के बाद महिलाएं छलनी से चन्द्रदर्शन करके और पति का चेहरा देखती हैं, फिर पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर व्रत की विधि को समाप्त करता है।
करवा का अर्थ मिट्टी का बर्तन और चौथ का अर्थ चतुर्थी तिथि होता है। करवा चौथ के दिन सुहागन स्त्रियां करवे की खास विधि-विधान से पूजा करती हैं। इस व्रत पर शादीशुदा स्त्रियां चंद्रमा की पूजा करती हैं। पूजा की सामग्री में सिन्दूर, कंघी, शीशा, चूड़ी, मेहंदी आदि दान में दिया जाता है। करवा चौथ के चलते बाजारों में महिलाओं की खासी भीड़ दिखाई पड़ती है।
यह पर्व रिश्तों को मजबूत बनाने वाला होता है जिस कारण यह पति-पत्नी दोनों के लिए इसका ख़ास महत्व होता है l यही कारण है कि करवा चौथ वाले दिन पत्नी द्वारा अपने पति की लंबी आयु और उसकी सुख-समृद्धि के लिए की गई पूजा-अर्चना पति की जिंदगी में पत्नी की अहमियत को ओर भी ज्यादा बढ़ा देती है।