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होली पर निबंध | Holi Essay In Hindi

होली पर निबंध | Holi Essay In Hindi

अस्सी के दशक में बॉलीवुड की एक सुपरहिट फिल्म आयी थी-शोले। दोस्तों इस फिल्म में एक बहुत ही प्यारा गीत था-

‘‘होली के दिन दिल खिल जाते है, रंगों में रंग मिल जाते है। गिले-शिकवे भूल के दोस्तों, दुश्मन भी गले मिल जाते है।।‘‘
जी हां दोस्तो! होली के त्यौहार की कुछ ऐसी ही खास बात है कि इस दिन दुश्मन भी अपने गिले-शिकवे भूलाकर एक हो जाते है। होली के पर्व की महत्वता इस गीत के इन दो पंक्तियों से भली-भांति समझी जा सकती है।
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प्रस्तावना:

होली हमारे देश में मनाये जाने वाले विभिन्न त्यौहारों में से एक प्रमुख त्यौहार हैं। दीपावली की भांति ही होली भी हिन्दू धर्मावलम्बियों का एक बहुत बड़ा त्यौहार है। होली ऐसा रंग-रंगीला त्यौहार है जिसे सभी धर्मों के लोग मिल-जुलकर हर्षोल्लास के साथ मनाते है। सामान्य तौर पर वसंत ऋतु के आरम्भ में आने वाला यह त्यौहार हिन्दू पंचांग के फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। दो दिन मनाये जाने वाले इस त्यौहार को सभी धर्म, सम्प्रदाय, जाति के लोग अपने गिले-शिकवें भूलकर उत्साह एवं मस्ती के साथ यह त्यौहार मनाते है।
होली का इतिहास / होलिका दहन की कहानी (Holika Dahan Story in Hindi) : 
Holika Dahan story
भारतीय संस्कृति में हर त्यौहार का एक अलग ही महत्व हैं और हर त्यौहार के पीछे कोई-ना-कोई दिलचस्प कहानी जुड़ी होती है जो हमें अच्छी शिक्षा प्रदान करने के साथ ही भगवान के प्रति हमारी आस्था को और अधिक प्रगाढ़ करती है। इसी प्रकार होली के त्यौहार के पीछे भी एक पौराणिक कथा है। प्राचीन काल में दैत्यों में हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा हुआ करता था। हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानता था तथा उसने अपनी प्रजा में यह ऐलान करवा दिया था कि उसके अतिरिक्त किसी अन्य किसी की पूजा नहीं की जाये। उसके इस आदेश से प्रजा भयभीत हो गयी और उसकी पूजा करने लगी। जगह-जगह उसने अपने मंदिर बनवाये। जो भी उसकी इस आज्ञा का पालन नहीं करता, वह उसे मृत्युदण्ड दे देता था। हिरण्यकश्यप के एक पुत्र का जिसका नाम प्रहलाद था। बालक प्रहलाद नारद मुनी की प्रेरणा से भगवान विष्णु की भक्ति करने लगे। अपने पिता के आदेशों के विपरीत भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु में पूजा खुलेआम करने लगे। जब हिरण्यकश्यप को इस बात को पता लगा तो उसने बालक प्रहलाद को हर प्रकार से डरा-धमका कर भगवान विष्णु की पूजा करने से रोका। यहां तक की उसने बालक प्रहलाद को कारावास में भी डलवा दिया। परन्तु जब प्रहलाद नहीं माने तो उसने प्रहलाद को जान से मारने की योजना बनायी। उसने अनेक प्रकार के यत्न किये परन्तु भगवान विष्णु की कृपा के कारण वह भक्त प्रहलाद का कुछ भी नहीं बिगाड़ सका। हिरण्यकश्यप की एक बहिन भी थी, होलिका। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि का उस पर कोई प्रभाव नहीं होगा तथा वह अग्नि में नहीं जल सकेगी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहिन होलिका के साथ मिलकर एक योजना बनायी कि लकड़ियों का एक ढेर बनाया जाये जिस पर होलिका प्रहलाद को लेकर गोद में बैठ जाये और उसे ढेर को आग लगा दी जाये। चूंकि होलिका को अग्नि से रक्षा का वरदान प्राप्त है इसलिए उसे कुछ नहीं होगा और भक्त प्रहलाद जल जायेगा। इसी योजना को अंजाम देने के उद्देश्य से होलिका भक्त प्रहलाद के साथ लकड़ियों के ढेर पर बैठ गयी और उस पर आग लगा दी गई। परन्तु जैसा दोनों बहिन-भाई ने सोचा था ठीक उसके विपरीत हुआ और भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की रक्षा की जिससे होलिका जल कर राख हो गयी और भक्त प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ। भगवान द्वारा अपने भक्त की रक्षा किये जाने तथा असत्य पर सत्य के विजय के प्रतीक के रूप में होली का त्यौहार मनाया जाता है।

होली कब मनायी जाती है :

फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका हदन का आयोजन किया जाता है तथा इसके अगले दिन चैत्र मास की प्रतिपदा को होली खेली जाती है जिसे धुलण्डी कहते है। दो दिन मनाये जाने वाले इस होली के त्यौहार में पहले दिन यानी होलिका दहन के लिए संध्या के समय शुभ मुहूर्त के अनुसार होली दहन किया जाता है तथा दूसरे दिन धुलण्डी को रंग-बिरंगें गुलाल, रंगों के साथ होली खेली जाती है। बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरूष सभी एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं और होली खेलते है।

होली के रंगों का महत्व:

होली के पर्व पर रंग-बिरंगों अबीर, गुलाल, रंगों का प्रयोग करने के पीछे भी एक पौराणिक कथा हैं तथा इसमें प्रयोग किये जाने वाले अलग-अलग रंगों का भी अपना महत्व है। 

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जैसा कि माना जाता है, भगवान श्रीकृष्ण का रंग सांवला है और राधाजी गोरे रंग की है। बालपन में भगवान श्रीकृष्ण को राधाजी तथा अन्य गोपियां उनके सांवले रंग के कारण चिढ़ाया करती थी। तो एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माता यशोदाजी से पूछा कि माता मेरा रंग इतना काला है इसलिए राधा और अन्य गोपियां मुझे चिढ़ाती है। काश, राधा का रंग भी मेरे जैसा होता तो मुझे कोई नहीं सताता। तो माता यशोदाजी ने उपहास में ही कहा कि तुम जिस रंग में राधा को देखना चाहते हैं हो वह रंग उसके मुख पर लगा दो। कृष्ण जी को यह सुझाव अत्यंत भा गया और उन्होंने अपने सखाओं के साथ मिलकर राधाजी व अन्य गोपियों को जमकर रंग लगाया। जब ग्रामवासियों ने कृष्णजी, राधाजी सहित अन्य बालक-बालिकाओं को एक-दूसरे पर रंग लगाते हुए देखा तो उन्हें बालकों का यह नटखट शरारती खेल अत्यंत प्रिय लगा। माना जाता है तभी से होली के पर्व पर रंग-गुलाल से खेलने की परम्परा चली आ रही है। अलग-अलग रंगों का भी अपना महत्व है। जैसे लाल रंग प्रेम का प्रतीक है। यह भगवान श्रीकृष्ण एवं राधाजी के प्रेम को दर्शाता है। पीला रंग शुभता का प्रतीक है। हल्दी का रंग पीला होता है और शुभ, मांगलिक कार्यों में हल्दी का प्रयोग होता है। हरा रंग हरयाली का, बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है। नीला रंग भगवान श्रीकृष्ण का रंग है।

वर्ष 2023 में होली कब मनायी जायेगी :

होली का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष 2023 में पूर्णिमा तिथि सोमवार, 6 मार्च को सायं 4.17 बजे प्रारम्भ होगी जो मंगलवार, 7 मार्च को सायं 6.09 बजे तक रहेगी। इस प्रकार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त मंगलवार, 7 मार्च को सायं 6.31 बजे से रात्रि 8.58 बजे तक रहेगा। 8 मार्च को धूलण्डी मनायी जायेगी। सरकारी कलेण्डर में होली का अवकाश 6 मार्च एवं 7 मार्च का दिया गया है। इस साल होलाष्ठक 27 फरवरी से प्रारम्भ होगा जो कि 8 मार्च तक रहेगा। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार होलाष्ठक में शुभ कार्य नहीं किये जाते है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार इन्द्रदेव के कहने पर कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या को भंग दिया था जिससे कूपित होकर भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्प कर दिया था। जिस भी भगवान शंकर ने कामदेव को भस्म किया था वह दिन फाल्गुन मास की अष्टमी था। इसके पश्चात् देवी रति जो कि कामदेव की पत्नी थी, उन्होंने लगातार आठ दिन तक भगवान शिव की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर कामदेव को पुनः जीवित कर दिया था। इन्हीं आठ दिन को होलाष्ठक के रूप में माना जाता है।

होली कैसे मनाई जाती है:

होली के पर्व की तैयारियां होली के 10-15 दिन पहले से हो जाती हैं। होली दहन पर पूजा के लिए गाय के गोबर के बड़कुल्ले तैयार किये जाते है। गाय के गोबर को अलग-अलग आकार जैसे सूर्य, चन्द्रमा, नारियल, सितारे आदि का रूप देकर इन्हें सूका लिया जाता है और इनकी मालाएं बनायी जाती है। गांव-शहरों के स्थानीय प्रशासन, मौहल्ले, कॉलोनियों की समितियों आदि द्वारा अपने-अपने शहरों, मुहल्ले, ढाणियों आदि के मुख्य चौराहों पर होली लकडियों, घांस-फूंस आदि का ढेर लगाकर होली बनायी जाती है। इसमें भक्त प्रहलाद के प्रतीक के रूप में एक मोटे बांस को बांधा जाता है। सायंकाल में स्थानीय महिलाएं सज-धज कर बढ़कुल्लो, पकवानों आदि से होली की पूजा सकती हैं। होली की परिक्रमा की जाती है। इसके पश्चात् शुभ मुहूर्त के अनुसार होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के अवसर पर जब होली को अग्नि लगायी जाती है, उसके बाद भक्त प्रहलाद के प्रतीक के रूप में बांधी हुई लकड़ी को निकाल लिया जाता है। होलिका दहन हो जाने के बाद लोग उसकी परिक्रमा करते हैं। एक-दूसरे के गुलाल लगाते हैं और होलिका की अग्नि को अपने घरों में ले जाकर उस पर घी, धूप आदि रखकर उसकी धुंआ अपने घर के प्रत्येक कोने में लगाते है। इससे नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और घरों में सकारात्मकता आती है। होलिका दहन के अवसर पर गेहूं की नव-फलियां जिन्हें दंगी भी कहते हैं, होलिका की अग्नि में सेकी जाती है।
 होलिका दहन के अगले दिन धूलण्डी मनायी जाती है। इस दिन महिलाएं सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त हों होली की कथाएं सुनती है। इसके बाद बच्चे-बूढ़े सभी रंग-गुलाल की होली खेलते हैं। एक-दूसरे को रंग लगाते है। सभी अपने मित्रों, रिश्तेदारों, पड़ौसियों के जाकर होली की राम-राम करते हैं और रंग लगाते है। इस अवसर पर लोग छोटी-छोटी टोलियां बनाकर चंग-ढोल आदि के साथ भगवान के भजन और होली के गीत गाकर फेरियां, भी लगाते है।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मनायी जाने वाली होली:

सम्पूर्ण भारत सहित विश्व के कई देशों में होली का पर्व मनाया जाता है। भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग प्रकार से होली मनायी जाती है। जैसे बरसाना (उत्तरप्रदेश) में लठमार होली, बिहार में फागुवा होली, कुंमाऊ (उत्तराखण्ड) में खादी होली, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में रंग पंचमी, केरल में मंजल होली, पश्चिम बंगाल में बसंत उत्सव और डोल यात्रा, उदयपुर (राजस्थान) में रॉयल होली आदि। हमारे देश के अलग-अलग प्रांतों अलग-अलग होली खेली जाती है।
 उत्तरप्रदेश में मथुरा, वंृदावन, बरसाना, ब्रज क्षेत्र में लठमार होली खेली जाती है। इसमें परम्परानुसार महिलाएं पुरूषों से लाठियों से प्रहार करती है और पुरूष लकड़ी की ढाल से उन प्रहारों को झेलते हैं। यहां की होली विश्व प्रसिद्ध होली है तथा इसे देखने के लिए विश्वभर के पर्यटक यहां आते है। बिहार में फागुआ के नाम से होली का पर्व मनाया जाता है। यहां पर भोजपुरी भाषा के लोकगीतों, पानी एवं प्राकृतिक रंगों के साथ होली खेली जाती है। फागुआ में भांग का प्रयोग भी विशेष रूप से किया जाता है। उत्तराखण्ड के कुआंउ क्षेत्र में खादी होली खेली जाती है। यहां पर पारम्परिक वेशभूषा में लोग टोलियां बनाकर नृत्य-गान के साथ होली खेलते है। महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश में होलिका के 5वें दिन रंग-पंचमी के रूप में होली मनायी जाती और खूब हुड़दंग किया जाता है। पंजाब में होला मौहल्ला के रूप में होली मनायी जाती है। इस अवसर पर मार्शल आर्ट आदि का प्रदर्शन किया जाता है। केरल में मंजल कुली के रूप में होली मनाते है। पश्चिम बंगाल में बसंत उत्सव और डोल यात्रा निकाल कर होली मनाते है। गोवा का शिग्मो त्यौहार एक विशाल वसंत उत्सव के रूप में मनाया जाता है। मणिपुर में याओसांग पर्व के रूप में होली का त्यौहार मनाते हैं जो कि सात दिनों तक चलता है। असम में फाकुवाह के रूप में होली मनाते है। राजस्थान के जयपुर, उदयपुर में शाही होली मनायी जाती है जो कि भव्य समारोह आयोजित कर मनाते है। हरियाणा में होली पर भाभी-देवर के निश्छल प्रेम को दर्शाते हुए होली मनाते हैं जिसमें भाभी द्वारा देवर को सताने की परम्परा है। दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली बहुत बड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ में होली के अवसर पर लोक-गीतों का प्रचलन है। मालवांचल में होली को भगोरिया कहते है।

होली पर बनाये जाने वाले पकवान:

 प्रत्येक त्यौहार की भांति होली पर भी अनेक प्रकार के पकवान बनाये जाते है। होली पर बनाये जाने वाले पकवानों में सबसे पहले आता है, गुझियां। गुझियां कई प्रकार के बनाये जाते हैं जैसे बादाम गुझिंया, मावा गुझिंया, सेव गुझिंया आदि। इसी प्रकार होली का नाम आते ही ठण्डाई का नाम भी मस्तिष्क में आता है। दूध में कई प्रकार की पौष्टिक चीजे जैसे पिस्ता, केसर, खसखस, खजूर, काजू, बादाम आदि मिलाकर ठण्डाई तैयार की जाती है। कुछ लोग ठण्डाई में भांग भी मिलाकर पीते है। कई जगह होली पर इमरती, मावा के पेड़े, बेसन की चक्की, बेसन के लड्डू, बालूशाही, खीर आदि भी बनायी जाती है।

होली से जुड़ी सामाजिक कुरीतियां:

होली आपसी प्रेस, सद्भाव, भाई-चारे का त्यौहार हैं। परन्तु कुछ लोग अपने व्यवहार और कुरीतियों के कारण इस त्यौहार को भी पवित्र कर देते है। कुछ असामाजिक तत्व इस अवसर पर कई प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन करते हैं जो कि नहीं करना चाहिए। कुछ लोग इस अवसर पर जुंआ आदि भी खेलते है, जो कि एक बुराई है। इस वैज्ञानिक युग में कई प्रकार के ऐसे केमिकल आ गये है जिनका प्रयोग होली पर कुछ लोग करते हैं, जैसे कि ग्रीस, ऑयल आदि। इनका प्रयोग करने से त्वचा जल जाती है। आंखों व बालों को क्षति पहुंचती है। होलिका हदन के नाम पर कुछ लोग घर में पड़ा कचरा भी उसमें डालकर उसे अपवित्र करते है। लोग चौहारों आदि पर टायर और कई प्रकार की खराब वस्तुएं जलाते हैं जिससे वातावरण दूषित होता है। हमें भी सभी कुरीतियों से बचना चाहिए।

होली पर ध्यान देने योग्य बाते:

 होली के दिन सभी मस्ती करती है। परन्तु कुछ लोग इस मस्ती को दूसरे स्तर पर ले जाते है जिससे इस पावन त्यौहार का मजा खराब हो जाता है। प्रत्येक त्यौहार के कुछ कहे-अनकहे नियम होते हैं, जिनका हमें पालना करना चाहिए। आधुनिकता के इस दौर में इस प्रकार की कई चीजे आ गयी है जिनका हमें होली के दिन प्रयोग नहीं करना चाहिए। केमिकल युक्त पदार्थों के प्रयोग से त्वचा पर जलन, खुजली, सूजन जैसी समस्याएं हो सकती है। आंखों को क्षति पहुंच सकती है। बाल कमजोर हो सकती है, उनमें डैंड्रफ लग सकता है। खतरनाक रंगों के प्रयोग से श्वास सम्बन्धी समस्याएं भी हो सकती है। होली के लिए ध्यान देने योग्य कई बातें है जिनका हमें पालन करना चाहिए।
– बच्चों को होली के दिन पानी के गुब्बारों से खेलने में बड़ा मजा जाता है। कुछ लोग इसमें पानी के साथ रंग भी मिला देते है। यहां इस बात का ध्यान रखा जाये कि गुब्बारा किसी व्यक्ति पर ना फेंके। इससे किसी को चोट लग सकती है। चलते वाहन पर गुब्बारा फेंकने से दुर्घटना हो सकती है। पानी की किसी आंख ने जाने से उसको क्षति भी पहुंच सकती है।
– चलते-फिरते वाहनों, जानवरों आदि पर रंग आदि नहीं फेंकना चाहिए। इससे कोई भी अप्रिय घटना होने की आंशक रहती है।
– हानिकारक कैमिकल युक्त रंगों आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इससे त्वचा एवं बालों को नुकसान पहुंच सकता है। जहां तक हो सके हर्बल रंगों का प्रयोग करना चाहिए।
– गुलाल-रंग आदि किसी को जबरदस्ती नहीं लगाना चाहिए। कुछ लोग जबरदस्ती मुंह पर रंग-गुलाल लगाते हैं जिससे आंख में रंग जाने का अंदेशा रहता हैं। इससे किसी की आंखें भी खराब हो सकती है।
– होली के त्यौहार का कुछ लोग गलत मतलब निकाते है और इसका गलत फायदा भी उठाते है। किसी को कहीं भी, किसी भी प्रकार से छूते है, रंग लगाते हैं। इस अवसर पर विशेष रूप से महिलाएं अपने-आप को असहज महसूस करती है। ऐसा नहीं करना चाहिए।

उपसंहार:

 होली का त्यौहार रंगों का त्यौहार है जो प्रत्येक धर्म, जाति, सम्प्रदाय से उपर उठकर भाई-चारे और एकता का संदेश देता है। इस दिन सभी लोग अपने मतभेद भुलाकर गले मिलते हैं और एक-दूसरे को रंग लगाते है। अपने अंदर के अहंकार और बुराइयों को मिटाकर रंगों से एक दूसरे को रंग कर प्रेम, सौहार्द्र के साथ रहते हुए सभी मतभेद भुलाने चाहिए। हमें समझना चाहिए कि सभी से प्रेम, भाईचारे से मिलजुलकर रहने से जीवन के रंगों को अपने भीतर आत्मसात करने का त्यौहार होली है। होली के त्यौहार से हमारी सामाजिक एकता मजबूत होती है।

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