Maha Shivratri Essay 2023 | महाशिवरात्रि पर हिन्दी में निबंध

महाशिवरात्रि पर हिन्दी में निबंध

प्रस्तावना : 

हमारा भारत देश त्यौहारों का देश है। सभी धर्मों में धर्मावलंबी यहां अपने-अपने त्यौहारों हर्षोल्लास से मनाते है। हिन्दू धर्म में अनेक देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की जाती हैं। हिन्दू धर्मावलंबी विभिन्न देवी-देवताओं के अनेक त्यौहार मनाते है। हिन्दूओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक है-महाशिवरात्रि। महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता भगवान शिव के प्रकटोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

Shivratri
Maha-Shivratri

महाशिवरात्रि कहाँ मनाई जाती है?

भारत के विभिन्न हिस्सों में महाशिवरात्रि धूमधाम से मनायी जाती है। मध्य भारत में बड़ी संख्या में शिव अनुयायी है। यहां के महाकालेश्वर मंदिर में शिवभक्त भगवान शिव की पूजा अर्चना करते है। दक्षिण भारत से आन्ध्रप्रदेश, करेल, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु के सभी मंदिरों में महाशिवरात्रि मनायी जाती है। कश्मीरी ब्राह्मण इस दिन को भगवान शिव एवं माता पार्वती के विवाह के रूप में मनाते है। यहां महाशिवरात्रि का उत्सव तीन-चार दिन पहले ही प्रारम्भ हो जाता हैं जो कि महाशिवरात्रि के दो दिन बाद तक रहता है। भारत सहित बांग्लादेश, नेपाल आदि में भी महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। बांग्लादेशी हिन्दू इस दिन चंद्रनाथ धाम (चिटगांव) में इस पर्व को मनाते है। इसी प्रकार नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर में इस दिन शिवभक्तों की भीड़ उमड़ती है।

महाशिवरात्रि कब आती है?

ऐसी मान्यता है कि सृष्टि का आरम्भ इसी दिन हुआ था। महाशिवरात्रि को भगवान शिव प्रजापिता ब्रह्मा के शरीर से भगवान रूद्र के रूप में प्रकट हुए थे। भगवान शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग के रूप में हुआ था यानि अग्नि के शिवलिंग के रूप में। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर एवं देवी पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था। हिन्दू पंचांग के अनुसार फागुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह पर्व मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि की कथा :

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवताओं ने अमर अमृत प्राप्त करने के उद्देश्य से समुद्र मंथन किया तो समुद्र मंथन में अमृत के साथ ही हलाहल विष भी निकला जिसे देख सभी भयभीत हो गये। यह हलाहल विष इतना शक्तिशाली था कि सम्पूर्ण सृष्टि को नष्ट कर सकता था। तब देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की और भगवान शिव ने हलाहल विष को अपने कण्ठ में रख लिया। इसे कण्ठ में रखने के कारण उनका कण्ठ विष के प्रभाव से नीला हो गया इसलिए भगवान शिव को ‘नीलकण्ठ‘ भी कहा जाता है। इस विष के प्रभाव से भगवान शिव को अत्यंत पीड़ा हुई। तब देव चिकित्सकों ने देवताओं को सलाह दी की भगवान शिव को सम्पूर्ण रात्रि जगाये रखा जाये। तब देवताओं ने भगवान शिव को सम्पूर्ण रात्रि जगाने तथा उनके आनन्द के लिए नृत्य, संगीत आदि का आयोजन किया। भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया। इसी सम्पूर्ण घटना का शिवरात्रि के नाम से मनाया जाता है।

शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर:

यूं तो बोलचाल की भाषा में महाशिवरात्रि को लोग शिवरात्रि भी बोलते है। परन्तु दोनों में अन्तर है। शिवरात्रि एक वर्ष में 12 बार आती है। प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष के 14वें दिन यानी अमावस्या से एक दिन पूर्व को शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण माद्य फागुन की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव जहां-जहां शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए उन्हें ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन विभिन्न 64 स्थानों पर शिवलिंग प्रकट हुए, उनमें से 12 स्थानों का नाम पता होने के कारण ही हम 12 जयोतिलिंग को पूजा जाता है। ये बारह ज्योतिलिंग है:- सोमनाथ (गुजरात), मल्लिकार्जुन (आन्ध्रप्रदेश), महाकालेश्वर (मध्यप्रदेश), ओंकारेश्वर (मध्यप्रदेश), केदारनाथ (उत्तराखण्ड), भीमाशंकर (महाराष्ट्र), बाबा विश्वनाथ (उत्तरप्रदेश), त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र), वैद्यनाथ (झारखण्ड), नागेश्वर (गुजरात), रामेश्वरम् (तमिलनाडु) एवं घुश्मेश्वर (महाराष्ट्र)। भगवान शिव के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव करने के लिए शिव अनुयायी महाशिवरात्रि के दिन महाकालेश्वर मंदिर (उज्जैन, मध्यप्रदेश) में दीप स्तंभ लगाते है।
वेद-पुराणों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था। इस दिन भगवान शिव ने वैराग्य जीवन त्यागकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। इसलिए शिव भक्त इस दिन शिव विवाह को उत्सवपूर्वक मनाते है। महाशिवरात्रि को सम्पूर्ण रात्रि शिव अनुयायी भगवान शिव की जागरण कर आराधना करते है।

महाशिवरात्रि 2023 :

हर वर्ष की भांति वर्ष 2023 में भी महाशिवरात्रि फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को अर्थात् 18 फरवरी एवं 19 फरवरी, 2023 को मनायी जायेगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार 18 फरवरी, 2023 को रात्रि 8.02 बजे प्रारम्भ होकर 19 फरवरी को सायं 4.18 बजे सम्पूर्ण होगी। इस वर्ष महाशिवरात्रि पर शनि प्रदोष का संयोग बन रहा है। प्रदोष का व्रत हर महीने में दो बार आता है। इस बार महाशिवरात्रि शनिवार को होने के कारण इस दिन का महत्व अधिक बढ़ जाता है। शनि दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए इस दिन भगवान शिव का काले तिल से अभिषेक करना चाहिए। वेदों के अनुसार रात्रि के चार प्रहर में महाशिवरात्रि की पूजा करने का विधान है। इस वर्ष ये चार प्रहर निम्नानुसार रहेंगे:- प्रथम प्रहर 18 फरवरी को शाम 6.45 बजे से रात्रि 9.35 बजे तक, द्वितीय प्रहर 18 फरवरी को 9.35 से 19 फरवरी मध्यरात्रि 12.24 बजे तक, तृतीय प्रहर 19 फरवरी को मध्यरात्रि 12.24 बजे से 19 फरवरी प्रातः 3.14 बजे तक तथा चतुर्थ प्रहर 19 फरवरी को प्रातः 3.14 बजे से प्रातः 6.03 बजे तक। महाशिव रात्रि के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सायं 4.12 बजे से सायं 6.03 बजे तक रहेगा। इस दौरान भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। शिव भक्त मनवांछित फल प्राप्त करने के लिए व्रत एवं पूजन के माध्यम से भगवान शिव की आराधना करते है।

महाशिवरात्रि के व्रत का महत्व :

महाशिवरात्रि के व्रत का अत्यधिक महत्व है। शिवभक्त के लिए यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। यूं तो प्रत्येक माह की चतुर्दशी को शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। परन्तु महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा कर व्रत रखने वालों का वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने वर्षो तक तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। उसी प्रकार शिव समान जीवन साथी प्राप्त करने की इच्छा से कुवांरी कन्याएं इस दिन व्रत रखती है। वहीं विवाहित महिलाएं यह व्रत करके भगवान शिव से अखण्ड सौभाग्यवती रहने का वरदान प्राप्त करना चाहती है।
मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन की गई पूजा-अर्चना से भक्तों को कई प्रकार के फल प्राप्त होते है। इस दिन भगवान शिव का दुग्ध एवं जल से अभिषेक करने से भक्तों की सभी पीड़ाएं दूर होती है तथा सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है तथा भगवान शिव की कृपा उन पर बनी रहती है।

कैसे करें महाशिवरात्रि की पूजा? :

इस दिन ‘ओम् नमः शिवाय‘ का जाप करते हुए शिव का अभिषेक करना चाहिए। इस दिन शिव तांडव स्त्रोत एवं शिव चालीसा का पाठ भी करना चाहिए। चमत्कारी शिव तांडव स्त्रोत के पठन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
महाशिवरात्रि के दिन प्रातः जल्दी उठकर, स्नान आदि करके भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके भगवान शिव को पंचामृत से स्नान कराएं। भगवान शंकर के मंदिर में जाकर उनका अभिषेक करें। शिवलिंग के पास दीपक जलाकर चंदन का तिलक लगाए। भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, फल, मिष्ठान चढ़ाएं। इस दौरान ओम् नमः शिवाय, ओम् नमो भगवते रूद्राय, ओम् नमः शिवाय रूद्राय शम्भावाय् भवानीपतये नमो नमः आदि मंत्रों का उच्चारण करें।
यहां यह ध्यान रखने योग्य बात है कि भगवान शिव को तुलसी के पत्ते, हल्दी तथा चंपा व केतकी के फूल नहीं चढ़ाये जाते है।
भगवान शिव भोले भण्डारी हैं। अनेक कथाओं से माध्यम से हमें यह पता चलता हैं कि भगवान शिव थोड़े सी पूजा-अर्चना से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। पुराणों में यह उल्लेख मिलता हैं कि भगवान शिव की पूजा देवताओं के साथ ही दानवों ने भी करके अनेक शक्तिशाली वरदान प्राप्त किये है। भगवान शिव अपने सभी भक्तों को मनवांछित फल देते है। तो आइए इस महाशिवरात्रि को आप और हम भगवान शिव की पूजा-अर्चना करें और भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त करें।
ओम् नमः शिवाय।

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